कुछ देर पहले
गहन अंधकार में थी मेरी दुनिया,
ये स्वर्णिम सवेरा कौन खिला गया!
कुछ देर पहले
आँखों से बहते थे दरिया,
ये मुस्कुराना मुझे कौन सीखा गया!
कुछ देर पहले
ना-उम्मीद सा दिल था,
ये उम्मीद नई सी कौन दिला गया!
कुछ देर पहले
ही तो सुंदर सपने सा था सब,
ये नींद से मुझे कौन जगा गया ?
कुछ देर पहले
जो था, अब नहीं है वो आलम,
कोई चोरी से मेरा सब चुरा ले गया ।