तेरा जाना

अलविदा मेरी तीसरी पुस्तक का पहला अध्याय है। पुस्तक की रूपरेखा मेरे ह्रदय में तैयार है लेकिन उसे कलम से उतारने में एक से दो वर्ष का समय लग जाएगा। 34 वर्षों को समेटने, संजोने में इतना समय लगाना उचित है मेरी नज़र में। तब तक पहला अध्याय...

दर्द-ए-निहाँ

कभी किताब-ए-दिल को पढ़नाये राज़ सारे अयाँ करेगा जो करना चाहा ता'बीर-ए-गुरेज़ाँकैसे कहो खुद को बयां करेगा हर पन्ने पर है मुख्तलिफ़ सी स्याही हर हर्फ़ दर्द-ए-निहाँ कहेगा कभी किताब-ए-दिल को पढ़ना कि राज़दारी से है सजाया हर तोहफा-ए-गम इस ज़िंदगी काजो होना चाहो इल्तिफ़ात-ए-गुरेज़ाँतो ये इख़्तिलाफ-ए-वफ़ा करेगा हर पन्ने पर है मुख्तलिफ़ सी स्याही [...]

मैं अमृता नहीं हो सकती

लेखिका होना आसान है लेकिन लिखना आसान नहीं, हर बार जब कलम उठती है तो शब्द मन से कागज़ पर आते-आते खुद ही बदल जाते हैं । उन्हें भी पता है कि ऐसे के ऐसे उतर गए तो बहुत से प्रश्नचिन्हों से घेर लिए जाएँगे। वो प्रश्नचिन्ह उन्हें डराते हैं । तो कभी साँप बन [...]

शजर का कफन

काश सुन लेते तुम कटते शजर की सिसकियाँ,काश देख सकते उजड़े घरोंदों की वीरानियाँ,काश पहुँच जातीं तुम तक पंछियों की कराहटें,काश महसूस होता दर्द टूटती टहनियों का तुम्हें, काश पढ़ लेती आँखें तुम्हारी पत्ते-पत्ते की गुज़ारिशें, काश ईंट-पत्थर की इमारतें शजरों का न कफन होता, काश बेलगाम लालच तुम्हारा इस कदर न बढ़ा होता, तो [...]