कौन समझे
वो इक हिज्र की रात
कैसे कटी उक़ूबत के साथ
और उस पर ये सितम
सहर आई भी तो खाली थे हाथ
ना यार-ए-वस्ल हासिल ना खुदा ही मिला
इश्क वालों का आखिर कसूर क्या था?
कौन समझे
वो इक हिज्र की रात
कैसे कटी उक़ूबत के साथ
और उस पर ये सितम
सहर आई भी तो खाली थे हाथ
ना यार-ए-वस्ल हासिल ना खुदा ही मिला
इश्क वालों का आखिर कसूर क्या था?