Category: shayari
खामोशियाँ
इश्क़
न कर दावा
ज़ख्म और शिफा
फरियाद
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कुछ यूँ ही 5
कुछ यूँ ही 4
कुछ यूँ ही-3
कुछ यूँ ही-2
कुछ यूँ ही
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दर्द-ए-कलम
उम्मीद
इंतेहा
जिस्म और बदनामी (2)
मंज़र और खंजर
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जिस्म और बदनामी
उल्फ़त और फुरक़त
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और यूँ हम एक रात और जी गए
और यूँ हम एक रात और जी गए । ______________________________ मेरे आँसुओं को मेरे सब दर्द पी गए, और यूँ हम एक रात और जी गए। ज़ख़्म तो बहुत छोड़े वक़्त ने रूह पर मगर, बड़ी सफाई से उसका दिया हर ज़ख़्म सी गए। उम्र लंबी थी गम-ए-रात की हिज्र की तरह, इंतखाब की कोई [...]
ज़ख़्म और हथियार
ख़्वाब और जेब
फ़रेब और आइना
ज़रूरत और शौक़
कतरे से गुहर
कतरे से गुहर बहुत कुछ गुज़री है ए-दिल कतरे से गुहर होने तक, यूँ ही तो नहीं सफर कामिल है, बादल से बिछड़ सीप के सीने तक, गम-ए-जुदाई, खौफ-ए-तन्हाई, खौफज़दा मुसाफ़िर, और चल देना यूँ ही तन्हा, किसी अंजाम का आगाज़ होने तक, आंधियों का सफर और गर्क होने का डर, अंदेशों से लिपट, हर [...]
कितना नज़दीक था
कसूर
कसूर आँखों में नींद पल रही हो और दिल में गज़ल न नींद, न दिल, न गज़ल का यह तो कमबख़्त रात का कसूर है वो आई गलत पहर।
चुनौती स्वीकार है
चुनौती स्वीकार है तुम उजाले चुन लो, हम अँधेरों से लड़ेंगे उम्र भर, तुम्हारी याद में जलेंगे, पर उफ् न लाएँगे लबों पर, न शिकवा करेंगे न शिकायत ही कोई, कोई जिक्र तुम्हारा करे तो हो जाएँगे बेखबर, न मुड़कर देखेंगे, न आवाज़ ही देंगे, करीब से गुज़रना पड़ा तो गुज़रेंगे अजनबी बनकर, तुम बहारों [...]
मैं और मेरे कातिल
मैं और मेरे कातिल कतरा-कतरा रोज़ मरा करते हैं, हम अपने कातिल साथ लिए चलते हैं । बड़े दिलदार हैं ये, गुनहगार खुद को करते हैं, कहने को तो खुदा से, ये भी डरा करते हैं । यूँ तो हँसना हमारा था कसूर, इनकी नज़र, अब कभी न मुस्कुराने का, इल्ज़ाम हम पर धरते हैं [...]
नए रिश्ते
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मुझे जाने दो
रात का चिराग
मेरी मानो तो
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तेरे सिवा
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वो शख्स/Wo Shaqs-
वो शख्स-जो बुझा बुझा सा नज़र आता है आज,उसे जलाया गया था, उम्मीदों के कारखानों में कभी,वो तबदील न हुआ रातों रात राख में यूँ ही,उसे तपाया गया था हिकारत की आतिशों से कहीं,कभी मुस्कुराती थी मासूमियत अक्स में जिसके,अब एक सर्द सी खामोशी पसरी है वहीं,कितना बेज़ार सा मंज़र है उस तन्हाई का,जो उसने [...]
बहुत हुआ
बहुत हुआ- लिबास ए जिंदगी ओढ़ कर चलते चलते, चल जनाजे के उस पार देखें होता क्या है ? जिस्मों की कैद में बंद हैं जो मजबूर रूहें, उनकी जश्न-ए-आजादी का नज़ारा क्या है? वो कलम जो लिखती है तकदीरें सबकी, उस कलम को चलाने वाली वो शय क्या है? दीदारे जुस्तजू से आबाद हैं [...]
आधे रस्ते से लौट आना वो
Returning back of upset dreams from half way, With desire to get freedom from the cage of un-fulfillment!
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