
काश देख सकते उजड़े घरोंदों की वीरानियाँ,
काश पहुँच जातीं तुम तक पंछियों की कराहटें,
काश महसूस होता दर्द टूटती टहनियों का तुम्हें,
काश पढ़ लेती आँखें तुम्हारी पत्ते-पत्ते की गुज़ारिशें,
काश ईंट-पत्थर की इमारतें शजरों का न कफन होता,
काश बेलगाम लालच तुम्हारा इस कदर न बढ़ा होता,
तो आज काश की जगह हर तरफ खिला चमन होता!
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