और यूँ हम एक रात और जी गए ।
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मेरे आँसुओं को मेरे सब दर्द पी गए,
और यूँ हम एक रात और जी गए।
ज़ख़्म तो बहुत छोड़े वक़्त ने रूह पर मगर,
बड़ी सफाई से उसका दिया हर ज़ख़्म सी गए।
उम्र लंबी थी गम-ए-रात की हिज्र की तरह,
इंतखाब की कोई सूरत न थी, सो सब खामोशी से सह गए।
कौन रखता है दर्द दिल में किसी और के लिए,
अपना जनाज़ा अपने कंधों पर लिए हम भी रह गए।
मयस्सर एक रात सुकून की होगी कभी कहीं,
यही सोच पलकों को दिलासा दिलाते चले गए।
यूँ हर रात हम जीते चले गए,
और दर्द आँसुओं को पीते चले गए ।
Meenakshi Sethi, Wings Of Poetry
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