कतरे से गुहर
बहुत कुछ गुज़री है ए-दिल कतरे से गुहर होने तक,
यूँ ही तो नहीं सफर कामिल है, बादल से बिछड़ सीप के सीने तक,
गम-ए-जुदाई, खौफ-ए-तन्हाई, खौफज़दा मुसाफ़िर,
और चल देना यूँ ही तन्हा, किसी अंजाम का आगाज़ होने तक,
आंधियों का सफर और गर्क होने का डर, अंदेशों से लिपट,
हर गुंजाइश को गले लगा बढ़ना, खुद के खाक या पाक होने तक,
हसरतों का जनाजा जो साथ लिए निकली थी घर छोड़,
वो बूँद यूँ ही नहीं हुई गुहर, एक मुंतज़िर सीप में गिर वजूद खोने तक,
किसी ने न समझी दिल की टीस, न देखा अश्क-ए-गुहर,
सबने सराही सीप, सजाया मोती, एक अदना सी तमन्ना पूरी होने तक,
बहुत कुछ गुज़री है ए-दिल कतरे से गुहर होने तक,
बहुत कुछ…
Meenakshi Sethi, wings of poetry