कुछ तो बात है
तेरे न होकर भी होने में
हर कोना मेरे घर का
डूबा है तेरी नज़म में
तेरी मौजूदगी का आलम
कुछ इस तरह जवाँ है
कि वो अब भी बसी हुई है
मेरे घर की हर धड़कन में
तेरा अहसास ही है काफी
मेरे छोटे से नशेमन को
बिखरी हुई हैं यादें
हर कोने हर करवट में
मैं समेटूँ भी तो कैसे
ये उलझी उलझी शामें
उन सलवटों में तेरी
महक बिखर गई है
वो हर शय कि जिसको
छुआ तेरी नज़र ने
वो हर शय आज भी
ज्यों की त्यों रखी हुई है
कुछ तो बात है
कि तू मेरा तो नहीं है
मेरे पास भी नहीं है
फिर भी मेरी हर सांस
लेती है इजाज़त
मुझसे होकर गुज़रने से पहले
तेरी गुज़री हुई रहगुजर से।
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