हाथ उठाएं तो दुआ क्या माँगें?
तकदीर से लड़कर भागें तो कहाँ भागें?
जहाँ दरख्त भी शामिल हों साज़िश में
वहाँ परिंदे आशियां आखिर कहाँ माँगें?
इन अंधेरों से अब समेटने को कहो अपना वजूद
जलते दियों की लो आखिर कब तलक जागे?
हर आस बुनती रही खुद को आज तक जिनसे,
थक कर चटकने लगे हैं अब वो रेशमी धागे।
ऐ ज़माने इन्हें इतना भी न आजमा,
कि होंसले बढ़ चलें तेरी हर हद से आगे।
Wow, loved it Meenakshi!!
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Thank You Kranti!!
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Always my pleasure 😊
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Wowwwwww beautiful piece Meenakshi !!
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Thank You Nirant!
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Pleasure always for beautiful stuff mate
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🙂
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बहुत सुंदर।
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Thank You!
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वाह।क्या खूब लिखा है।।।
हाथ उठाएं तो दुआ क्या माँगें?
तकदीर से लड़कर भागें तो कहाँ भागें?
जहाँ दरख्त भी शामिल हों साज़िश में
वहाँ परिंदे आशियां आखिर कहाँ माँगें?
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बहुत शुक्रिया। Glad you liked it!
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Beautifully penned
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Thank You!
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बेहतरीन लेखन
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Thank You!
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Nice one
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Thank You!
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Welcome
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